Table of Contents एक दिन रोटी ने पूछा कविता |
मेहनत की आँच पर पका कर
सपनो को हक़ीक़त बनाना था
अबकी मक़सद दरअसल कमबख़्त किशमत को हराना था
अरसो की कश्मकश के बाद
मूड के देखा जब पीछे
ज़ुबान पे नाम लिए फिरता हर शाकस मेरा दीवाना था
मकाम तक पहुँचे होंगे काई
मुझे तो मंज़िलो को खींच लाना था
और भूखा था पेट कल रत
ये मुस्कुराहट को ना बताना था
एक दिन रोटी ने पूछा कबतक जी पाएगा मेरे बगैर
एक दिन रोटी ने पूछा कबतक जी पाएगा मेरे बगैर
वो तो भीक में मिल जाती है
मकसद मेरा प्यास को बुझाना था
बदलते थे चेहरे हर रोज़
लेकिन मैं वही पुराना था
कुछ तो अलग सा था मुझपे
जो कोई ना पहचाना था
लंबे वक़्त के बाद समझा ये मामूली सा पहलू
की पेट्रोल लेके तो सभी चले थे
पर आग को मेरे सीने में आना था
ठुकरा लिया तुमने मुझे जितना तुम्हे ठुकराना था
मीलों अंधेरा चीर कर एक रोज़ सूरज को आना था
औरो ने जो किया कभी वैसी मेरी फ़ितरत नही
बस कर दिखाया सालो आज, मुझे करके जो दिखना था