Table of Contents हिन्दुस्तानी मुसलमान कविता |
सड़क पे शाम को चलते वक़्त
जो अज़ान सुनाई दी मुझको
तो याद आया की वक़्ता है क्या
और बात जेहन में ये आयी
मैं कैसा मुसलमान हूँ भाई
मैं शीया हूँ या सुन्नी हूँ
मैं खोजा हूँ या बोहरी हूँ
मैं गाँव से हूँ या सेहरी हूँ
मैं बागी हूँ या सूफ़ी हूँ
मैं कौमी हूँ या ढोंगी हूँ
मैं कैसा मुसलमान हूँ भाई
मैं सजदा करने वाला हूँ
या झटका खाने वाला हूँ
मैं टोपी पहन के फिरता हूँ
या दाढ़ी उड़ा के रहता हूँ
मैं आयत कॉल से पढ़ता हूँ
या फ़िमी गाने रमता हूँ
मैं अल्लाह-अल्लाह करता हूँ
या सेखो से लॅड पड़ता हूँ
मैं कैसा मुसलमान हूँ भाई
मैं हिन्दुस्तानी मुसलमान हूँ
Deccan से हूँ, UP से हूँ
भोपाल से हूँ, देल्ही से हूँ
Bengal से हूँ, गुजरात से हूँ
हर उँची नीची जात से हूँ
मैं ही हूँ जुलाहा मोची भी
मैं डॉक्टर भी हूँ, दर्जी भी
मुझमे गीता का सार भी है
एक उर्दू का अख़बार भी है
मेरा एक महीना रमजान भी है
मैने किया तो गंगा स्नान भी है
अपने ही तौर से जीता हूँ
एक-दो सिगरेट भी पीता हूँ
कोई नेता मेरी नस नस में नही
मैं किसी पार्टी के बस में
मैं हिन्दुस्तानी मुसलमान हूँ
खूनी दरवाज़ा मुझ मे है
एक भूल भुलैया मुझ मे है
मैं बाबरी का एक गुंबद हूँ
मैं शहर के बीच में सरहद हूँ
झुग्गियो में पलटी ग़ुरबत मैं
मद्रासो की टूटी सी छत मैं
दंगो में भड़कता शोला मैं
कुर्ते पर खून का धब्बा मैं
मैं हिन्दुस्तानी मुसलमान हूँ
मंदिर की चौखट मेरी है
मस्जिद के किबले मेरे है
गुरुद्वारे का दरबार मेरा
जीस्यू के गिरजे मेरे है
सौ में से चौदह हूँ
लेकिन चौदह ये कम नही पड़ते है
मैं पूरे सौ में बस्ता हूँ
पूरे सौ मुझमे बस्ते है
मुझे एक नज़र से देख ना तू
मेरे एक नही सौ चेहरे है
सौ रंग के है किरदार मेरे
सौ कलाम से लिखी कहानी हूँ
मैं जितना मुसलमान हूँ भाई
मैं उतना हिन्दुस्तानी हूँ
मैं हिन्दुस्तानी मुसलमान हूँ
मैं हिन्दुस्तानी मुसलमान हूँ